Tuesday 14 February 2012

ढाई आखर प्रेम के – 3



प्रिय मित्रों,


प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई |
राजा प्रजा जिस रुचे, सीस देय ले जाई || 

 
संत कबीर ने कहा है कि प्रेम को न तो खेत में उत्पन्न किया जा सकता है और न ही यह बाज़ार में मोल बिकता है, प्रेम में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, स्वत्व को त्याग कर ही प्रेम को पाया जा सकता है!  ऐसे प्रेम को अपने शब्दों के द्वारा बहुत ख़ूबसूरती से चित्रित किया है हमारे कुछ साथियों ने! हम आभारी हैं सभी के, जिन्होंने इतने कम समय में अपनी सुंदर रचनाएँ हम तक पहुंचाई! इस वासंती रुत में हर ओर केवल प्रेम ही प्रेम है! आप भी सुंदर प्रेम कविताओं का आनंद उठाइए !   


हम इस ब्लॉग का तीसरा और अंतिम भाग  ढाई आखर प्रेम के-३  प्रस्तुत कर रहें हैं,  इस उम्मीद के साथ कि प्रेम के इस रंग में आप भी सराबोर हो जायेंगे ....................


इस भाग में जिन कवियों की कवितायेँ प्राप्ति के आधार पर सम्मिलित की गयी हैं उनके नाम इस प्रकार हैं......


१.  अमितेष जैन
२.  अर्चना राज
३.  खुशबू सिंह
४. सुशील कृष्णेत
५. उमेश कुमार तिवारी
६.  रश्मि प्रिया
७.  नीरज पाल
८.   रेखा चमोली
९.   रजनी नैय्यर मल्होत्रा
१०.  नारायण सिंह चौहान
११.  हरीश अरोड़ा
१२.  माझी अनंत
१३.  भारत दोषी 


कृपया अपनी राय और सुझावों से अवगत कराएँ..........

 
udaanantarmanki.blogspot.com
 




अमितेष जैन 
 
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तुम नहीं जानती

 

तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
एक बार 
जब तुम चाय पी रही थीं 
मैंने तुम्हारी एक चुस्की चुरा ली थी
मेरे होंठो पर अब तक उसकी मिठास है 
तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
एक बार 
जब तुम जुल्फें संवार रही थी 
मैंने तुम्हारी जुल्फों को छुआ था
मेरी उँगलियाँ अब तक महकती हैं
तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
एक बार 
जब तुम मेरे पास बैठी थी
मैंने तुम्हारे हाथ की मेहँदी देखी थी 
मेरी दुनिया अब तक रंगीन है 
तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
एक बार 
जब तुमने मुझे पुकारा था
मैंने तुम्हारी आवाज़ सजा ली थी
मेरे चारों ओर अब भी गीत बजते हैं 
तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
एक बार 
जब तुम मेरे साथ चल रही थी 
मैं तुम्हे चाहने लगा था
और अब तक तुम्हारे इंतज़ार में चल रहा हूँ 
तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
मैन तुम्हारी आवाज सजा ली थी... ... ......
तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
और मैं अब तक तुम्हारे इंतज़ार में चल रहा हूँ
तुम नहीं जानती हो........
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  
मैंने कभी तुम्हे बताया ही नहीं ...  

 
   




अर्चना राज

 
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प्रेम बनाम अस्तित्व


लहरों ने एक दिन पूछा  किनारे से
की तुम कैसे रह पाते हो
इतना स्थिर, इतने शांत
बिना किसी हलचल, किसी गति के ,
किनारा हौले से मुस्कुराया
उसकी आँखों में अहिस्ता से उतर आई नमी
अचानक खुश्क हो गयी ,
कहा उसने की यही तो मेरी नियति है
ख्वाहिश नहीं मेरी मजबूरी है ..सदियों से
बस एक जगह स्थिर रहना;
मै टकटकी लगाकर
मात्र देख सकता हूँ .. महसूस कर सकता हूँ
पर कुछ भी क्रियात्मक नहीं कर सकता ,
सूरज जब अपनी सारी तीखी तपिश के साथ
मुझ पर छा जाता है
और मै अग्नि सा जलने लगता हूँ
तो बेतरह चीखता-चिल्लाता हूँ ..पर बेआवाज़
जिसे कोई नहीं सुन पाटा सिवाय तुम्हारे ;
तुम ही हो जो दौड़ी चली आती हो
अपनी ढेर सी नमी और ठंडक लेकर ;
और मुझमे ऐसे ज़ज्ब हो जाती हो
की मै फिर से स्वाभाविकता से जी पाता हूँ ,
जब भी हवाएं उग्र होती हैं
तो उड़ा ले जाती हैं मुझे ..यहाँ से वहां ;
जब मै बिखरने लगता हूँ ..बुरी तरह ..विवशता से;
तब भी बस तुम्ही हो
जो संभाल लेती हो मुझे अन्दर ही अन्दर ;
मुझे सांत्वना देती हो और अनजाने ही
जोड़ देती हो मेरे रक्त कड़ों को वापस मुझमे ,
और ये बारिश भी
जब होती है अपने पूरे यौवन पर ;
तब अपने जिंदादिल रफ़्तार से
मुझे यहाँ से वहां बहा देतीहै ;
मै भी जार- जार रोता हूँ
उसकी निरंतर गिरती बूंदों के संग ;
पर बादलों की गर्जना
और बिजली की कड़कडाहट में
कोई भी मेरी चीत्कार नहीं सुन पाता
सिवाय तुम्हारे ;
मेरे ढेरों अंग - प्रत्यंग न जाने कहाँ खो जाते हैं ;
तब भी ऐ लहरों ..तुम ही हो
जो न जाने कहाँ -कहाँ से उन्हें
ढूंढकर लाती हो और जोड़ देती हो मुस्कुराते हुए
बेहद खूबसूरती से ..बिना कोई निशाँ छोड़े ,
क्यों करती हो तुम ऐसा ..कहो तो
क्या है मेरा और तुम्हारा
ये अनकहा और बेनाम रिश्ता ,
पल भर के लिए लहरें थम गयी ख़ामोशी से
पर जब बोलीं तो उनकी आवाज़
आंतरिक रुदन के चरमोत्कर्ष से फट पड़ी ,
कौन हूँ मै तुम्हारी और क्यों करती हूँ ये सब
मै नहीं जानती
पर तुम्हारे बगैर जीना भी तो नहीं जानती ;
मेरे अस्तित्व की पहचान भी तुम्ही से है
वर्ना इस विशाल सृष्टि के महासागर में
मै भी न जाने कहाँ खो जाती ,
तुमसे दूर ..बेहद विकल और अधूरी सी होती हूँ ;
एक विचलित अहसास मुझमे
हलचल पैदा करता रहता है निरंतर ;
जिससे घबराकर मै बार-बार.. लगातार
तुम्हारे पास दौड़ी चली आती हूँ ;
तुम्हारे पास आकर ही मेरी बेचैनी को
कुछ ठहराव मिलता है;
तुम्हारे आगोश में कुछ पल के लिए ही सही
पर पूर्ण होने का अहसास  होता है,
पर न तो तुम्हारी सामर्थ्य इतनी है की
तुम मुझे रोक सको
और न ही मेरी की मै रुक सकूं ;
तुम्हारी प्रकृति है --बेहद स्थिर
और मेरी -- निरंतर गतिमान;
हम दोनों ही बिलकुल विपरीत हैं
पर एक दुसरे के बिना अपूर्ण भी ;
इसीलिए मै बार -बार तुम तक आती रहूंगी
अपनी परिपूर्णता के लिए
और तुम बार-बार नम होते रहोगे
अपने अस्तित्व के लिए ;
और यही हम दोनों के लिए
निर्धारित सुख भी है और श्राप भी;
अनंतकाल से न जाने कब तक..बस यूँ ही !!






ख़ुश्बू सिंह



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मैं खुश हूँ ....




ये आकाश मेरा हैं
इसका आदि और अंत सब मेरा हैं
मैं जंहा चाहू घूम सकती हूँ
जंहा चाहू देख सकती हूँ
मगर न तो ये आकाश


कभी उतर कर मेरे पास आयेगा



और न ही मेरे पंख हैं
जो उस तक पहुँच सकू
मैं यंही हूँ खुश हूँ
आकाश मेरा हैं
इसकी गर्जन, फुहार
बसंत बहार
सब पर मेरा हक़ हैं
मैं अपना हक़ ले रही हूँ
वो मुझे मेरा हक़ दे रहा हैं
मगर आज भी अब भी
मैं खामोश ही हूँ जैसे पहले थी
क्यों की जानती हूँ
आकाश का एहसास ही मेरा हैं
मैं तो इसे छू भी नहीं सकती
नजर भर देख लू बेशक
मगर झलक उसकी दिखा
भी नही सकती.....










सुशील कृष्णेत



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तुम्हारा होना उतना नहीं होता
जितना तुम्हारा न होना ,
जब घर में होती हो तब एक बारगी ;

एक जगह होती हो...
किचेन में गोल-गोल रोटियाँ सेंकते,
कलाई में गोल-गोल चूड़ियाँ खनकाते,
मुन्ने की ठुड्ढी पकड़ बाल संवारते
और कभी-कभी गृह-मंत्रालय का बजट समझाते॥
ऐसे ही कई फ्रेमों में बंटी-छंटी-थकी और ....पस्त !

पर आज जब नहीं हो
तो एक साथ सब जगह हो घर में
सर्वव्यापी।
दरवाजे की उस पहली दरार
जो खुलने से पहले दिखाती है तुम्हारी झलक...

से लेकर झाड़ू की मूठ पर पड़े
तुम्हारी उँगलियों के निशान तक ।
कहाँ नहीं हो ?
बिस्तर पर फिंके गीले तौलिये पर

चिपका है तुम्हारा ताना-
"कोई और होती न तब पता चलता ..."
फर्श के पोंछे का वह कपडे का टुकड़ा ,

जो भीगा है तुम्हारे आदेश से-"चप्पलें बाहर..."
आईने पर वो पुरानी बिंदियाँ

जो चिपकीं हैं तुम्हारे सौन्दर्याभिमान के गोंद से-
"अभी भी ऐसी दिखती हूँ कि..."
तकिया फूली है तुम्हारे जिद के फाहे से
जो बन जाती थी हमारे बीच का बाघा बार्डर
शर्ट की कालर से उलझा है

तुम्हारा इक बाल
जो वक्ते-रुखसत की आखिरी निशानी है ।
सच कहूं मेरी परिणीता !
तुम्हारा होना उतना नहीं होता
जितना तुम्हारा न होना ...











उमेश कुमार तिवारी



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प्रिये, 
प्रियेतम ,
सुन्दर, 
सुन्दरतम 
ताल, वाध्य, राग, रागनी 
छंद, मुक्तक, 
नज़्म, गज़ल 
स्वर, व्यंजन 
और गीत 
मीत सभी 
तुम .........











रश्मिप्रिया



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प्यार सिर्फ ढाई आखर का शब्द नहीं
जब होता है

तो हो जाता है रगों में बहता है
लाख छुपाने के बाद भी

आँखों में नज़र आता है
किसी बच्चे की जिद के समान

जुनूं बन कर सताता है
और जब याद आता है
तो बस मुस्कुराहट बन

होठो में सज जाता है ....





 



नीरज पाल





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प्यार की हर सुबह हो 
प्यार की हर शाम हो 
ये जिंदगी हर एक की
बस प्यार के ही नाम हो 
प्यार जब इतना ज़रूरी 
है इस ज़हां में तो 
प्यार करने वाले भला 
क्यों फिर बदनाम हों







रेखा चमोली



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पेड़ बनी स्त्री



एक पेड़ उगा लिया है मैंने
अपने भीतर
तुम्हारे प्रेम का
उसकी शाखाओं को फैला लिया है
रक्तवाहिनियों की तरह
जो मजबूती से थामें रहती हैं मुझे
इस हरे-भरे पेड़ को लिए
डोलती फिरती हूॅ
संसार भर में
इसकी तरलता नमी हरापन
बचाए रखता है मुझमें
आदमी भर होने का अहसास
एक पेड़ की तरह मैं
बन जाती हॅू
छॉव, तृप्ति, दृढता, बसेरा ।







 



रजनी नैय्यर मल्होत्रा 



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प्रेम , प्रेम ही होता है





प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
चंचल मन को मिलन की तिश्नगी,
जीवन को दर्पण देता है|
तन,मन धन सर्वस्व न्योछावर ,
पथरीले राहों में मंजिल को संबल देता है|
दुःख-सुख के पलों में आलिंगन देता है
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
अदभुत है इस प्रेम की रीत,
त्याग का दूजा  नाम है प्रीत|
जहाँ त्याग नहीं हो प्यार में,
वो प्यार  वफ़ा नहीं देता है |
प्रेम से  सुगन्धित संसार है,
ये फूलोँ में काँटों का हार है|
त्याग,बलिदान,वफ़ा से ,
जुड़ा प्यार का नाता है|
सिर्फ प्रेम को पाना ही नहीं,
लूट जाना भी प्यार है|
संसार से जुड़ा हर रिश्ता प्रेम से गहराता है,
वो प्रेमी,प्रेमिका,भाई ,बहन, दोस्त,पिता - माता है |
प्रेम गहरा हो , या  आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....









नारायण सिंह चौहान



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बाते  दो चार करे  



बाते  दो चार करे  ,
निगाहों  से  वार  करे ,
दिल  में  है  एक  आश,
कोई  हमे  प्यार  करे
प्यार  का इजहार  करे
जब  कही  जाये  रूठ  ,
दिल  जाये  टूट  टूट  ,
फिर  आये  वो  पास  ,
में  भी  रूठू  ,
झूट  मुठ  चितचोर  जाये  ,
हमको  भी  कोई  लुट  
बाते  दो चार करे  ,.......
शिकवे  शिकायत  हो  ,

रोज  रोज  बाते  हो  ,दे
ख  ले  कोई  काश  !
छुपछुप   मुलाकात हो 
मुह्ब्त्त  की  थोड़ी  सी 
हम   पर  भी  इनायत हो 
बाते  दो चार करे  ,....…..
दिल  ना  रहे  बस  में  ,
तोड़े  सारी रश्मे  ,
जब  तक  चले  साँस  ,
खाते  रहे  कसमे
लहू  में  मिलके  प्यार  ,
दोड़ जाये  नस नस में
बाते  दो चार करे  ,..........








हरीश अरोड़ा 


 
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प्रेम 


 
प्रेम में 
बंधन नहीं हैं
तुम उसे एहसास के 
नन्हें सजीले पंख देकर 
मुक्त कर दो 
वह उड़ेगा 
क्षणभर उड़ेगा 
और फिर से लौटकर 
स्नेह के बंधन तुम्हारे चूम लेगा 
देह के लघु-खंड तो 
क्षण की शिला हैं 
छू नहीं सकते 
स्थिर हैं.
वे तुम्हारे 
प्रेम की नवसर्जन में 
गदगद रहेंगे 
मूक अभिनन्दन करेंगे 
मूक अभिनन्दन करेंगे.








माझी अनंत 




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नाम



प्रेमीजन छोड़ गए हैं
अपने-अपने नाम
खोदकर पेड़ के तनों
टीन के छप्परों और
दीवाल की अंदरूनी
तहों पर .
यह नाम
सुरक्षित रखेगा
उनके प्रेम को
वे याद आएगें लोंगों को
जब-जब पढ़ेगें इसे.
नहीं हो सकते शीरी-फरहाद
लैला-मजनू या लोरिक चंदा
नहीं बना सकते
कोई ताजमहल
नहीं गढ़ सकते इतिहास .
फिर भी वे करते हैं प्यार
करते रहेंगें इसी तरह
और खोदते रहंेगें नाम .
किसी दिन
वे आएंगें लौटकर
पढ़ेगें अपने नाम
और हरे हो जाएंगे
पुराने दिन










भारत दोषी 



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प्रेम –रोग



मेरे हिस्से का आसमान
काले बादलो से घीरा है
शायद बिजलियॉ चमके
गडगडाहट हो
मूसलाधार बरसे
शायद हवा चल जाए
आंधी चले
बादल चल दे तेरे हिस्से ।

तेरे हिस्से के आसमान ने
घनघोर वर्षा की है
सब कुछ बह गया बाढ में
मुझे मालुम है तेरी तरफ से आते
बाढ में
तेरे आंसू भी शामिल है
यह पानी मेरे लिए
पवित्र,निर्मल है
जिसमे मैं डूब भी गया तो गम नहीं ।







8 comments:

  1. सबसे पहले आप सभी प्रेम दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,
    आपका अपने सभी अपनों के साथ प्रेम फलता फूलता रहे यूँ तो भावना से भरा दिल प्रेम को प्रदर्शित करने को किसी तय दिन का मोहताज़ नहीं ,फिर भी ये चलन सबको मुबारक हो दिल से.........
    मैंने " उड़ान अंतर्मन की " यहाँ पोस्ट सभी कवियों के पोस्ट पढ़े सभी रचनाएँ अपने आप में बहुत ही उतम प्रेम भाव पिरोये है सभी साथियों को आभार ......और अंजू जी, यशवंत जी को जितनी शुक्रिया दे सकूँ कम है | उनके ही सहयोग से सभी साथी अपने रचनाओं का संसार एक जगह समेट पायें........

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  2. संगीता स्वरूप आंटी जी की मेल पर प्राप्त टिप्पणी--

    इस ब्लॉग पर मैं टिप्पणी नहीं कर पा रही हूँ ... बहुत सुंदर प्रस्तुति है

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  3. मैं मल्होत्रा जी से 100% सहमत हूँ.... ! मेरे पास भी वही शब्द थे.... :)

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  4. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...के साथ ही सराहनीय भी ...बधाई सहित शुभकामनाऍं आप सभी को ...

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  5. Rashmi Prabha जी की मेल पर प्राप्त टिप्पणी--

    प्रेम के साथ तो भावों की अपनी उड़ान होती है ... पर चाय की चुस्की चुराकर अमितेश जैन ने , लहरों और किनारों की बातों से अर्चना राज जी ने , खुश्बू सिंह ने अपनी ख़ुशी एक दायरे में बताकर ,सुशील कृष्णेत के शब्द - " तुम्हारा होना उतना नहीं होता जितना तुम्हारा न होना ... " और क्रम से आते हर क़दमों ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है . सबको शुभकामनायें

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  6. अनंत शुभकामनाएं

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  7. बहुत सुन्दर, प्रेम कविताएँ यहाँ भी आप पढ़ सकते हैं--
    http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/prem_kavitayen/index.htm

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  8. "prem banam astitaw" archana jee kya khub kalpana ka sagar hai, kya khub racha hai lahron sang kinare ki mohabbat-e-dastaan,jharne ki tarah barasti aapki shabd rachna aur prem ki mithi khusboo liye mad-mast karti har mod pe aanand barsa rahi hai ,,,,bahut bahut sundar...

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