सिराज़ फैसल खान : 10 जुलाई 1991 को शाहजहाँपुर(उप्र) के एक गाँव महानंदपुर मेँ जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राथमिक स्कूल मेँ और उसके बाद इन्टरमीडिएट तक शाहजहाँपुर के इस्लामियाँ इन्टर कॉलेज मेँ पढ़ाई की। गाँधी फैज़ ए आम डिग्री कॉलेज शाहजहाँपुर से बी एस सी बायोलॉजी। कुछ वेब पत्रिकाओं में ग़ज़लें प्रकाशित ! कविताकोश नवलेखन पुरस्कार 2011 द्वारा सम्मानित!
सिराज फैसल खान की उम्र को देखते हुए जब उन्हें पढ़ती हूँ तो हैरत होती है, उनकी गजलों में उनके द्वारा उठाये गए सवाल, सोच और उनका दायरा ये यकीन दिलाता है कि उनमें एक बेहतरीन रचनाकार छुपा है! वक़्त के साथ उनकी कलम की धार और पैनी हो रही है! आईये उनकी कुछ गज़लें पढ़ते हैं!

गजल -1
हमारे मुल्क़ की सड़कोँ पे ये मन्ज़र निकलते हैँ
सियासी शक्ल मेँ अब मौत के लश्कर निकलते हैँ!
मेरे दुश्मन तो हँसकर फेँकते हैँ फूल अब मुझ पर
मगर कुछ दोस्तोँ की ज़ेब से पत्थर निकलते हैँ!
चली हैँ कौन सी जाने हवायेँ अब के गुलशन मेँ
यहाँ शाख़ोँ पे अब कलियाँ नहीँ ख़न्जर निकलते हैँ!
हमेँ मालूम है अब उस दरीचे मेँ नहीँ है तू
मगर फिर भी तेरे कूचे से हम अक्सर निकलते हैँ!
मसीहा ठीक कर सकता है तू ऊपर के ज़ख़्मोँ को
कई फोड़े भी हैँ जो रुह के अन्दर निकलते हैँ!
हमारे सामने कल तक जिन्हेँ चलना न आता था
हमारे सामने ही आज उनके पर निकलते हैँ!
खबर पहुँची है मेरी मुफ़लिसी की जब से कानोँ मेँ
मेरे हमदर्द सब मुझसे बहुत बचकर निकलते हैँ!
हमेँ अच्छा-बुरा यारोँ यही दुनियाँ बनाती है
दरिन्दे कोख से माँ की कहीँ बनकर निकलते हैँ!
ज़ुबाँ मेँ शहद है जिनकी बदन हैँ फूल के जैसे
परख कर देखिये तो दिल से सब पत्थर निकलते हैँ!
गज़ल-2
घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
रपट लिखाने मत जाना तुम ये धंधा सरकारी है!
बीच खड़े होकर लाशोँ के इक बच्चे ने ये पूछा
मज़हब किसको कहते हैँ, ये क्या कोई बीमारी है!
तुमको पत्थर मारेँगे सब रुसवा तुम हो जाओगे
मुझसे मिलने मत आओ तुम मुझ पर फ़तवा जारी है!
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई आपस मेँ सब भाई हैँ
इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है!
नया विधेयक लाओ अब के बूढ़े सब आराम करेँ
देश युवाओँ को दे दो अब नये ख़ून की वारी है
जीना है तो झूठ भी बोलो घुमा फिरा कर बात करो
केवल सच्ची बातेँ करना बहुत बड़ी बीमारी है!
सारी दुनियाँ ही तेरी है, तू सबका रखवाला है
मुस्लिम का अल्लाह भी तू है, हिन्दू का गिरिधारी है!
गज़ल-3
मुल्क़ को तक़सीम कर के क्या मिला है
अब भी जारी नफ़रतोँ का सिलसिला है!
क्योँ झगड़ते हैँ सियासी चाल पर हम
मुझको हर हिन्दोस्तानी से गिला है!
दी है क़ुर्बानी शहीदोँ ने हमारे
मुल्क़ तोहफ़े मेँ हमेँ थोड़ी मिला है!
हुक्मरानोँ ने चली है चाल ऐसी
आम लोगोँ के दिलोँ मेँ फ़ासिला है!
अब नज़र आता नहीँ कोई मुहाफ़िज़
हाँ, लुटेरोँ का मगर इक क़ाफ़िला है!
लुट रहा है मुल्क़ अब अपनोँ के हाथोँ
सोचिए आज़ाद होकर क्या मिला है!
प्रस्तुति-अंजू शर्मा
सहयोग : यशवंत माथुर
बहुत खूब ! एक से बढ़कर एक !
ReplyDeleteबीच खड़े होकर लाशोँ के इक बच्चे ने ये पूछा
मज़हब किसको कहते हैँ, ये क्या कोई बीमारी है!
क्या खूब कही गई है इस शेर में बात ! और एकदम सच है .... जो बड़े बड़ों को न समझ आये वो एक बच्चे की ज़ुबानी .... धर्म मज़हब सब दरअसल एक बीमारी का ही नाम है ...
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ReplyDeleteबीच खड़े होकर लाशोँ के इक बच्चे ने ये पूछा
ReplyDeleteमज़हब किसको कहते हैँ, ये क्या कोई बीमारी है!
शानदार ग़ज़लें हैं... सवाल उठाते ही नहीं, सच को बेपर्दा भी करते है और कोंचते भी हैं कि क्यों है... साधुवाद
waah kya baat hai , bahut sunder gajal, sab ki sab karai, chot kerne wali, dil ko chu jane wali............badhai dost
ReplyDeleteबीच खड़े होकर लाशोँ के इक बच्चे ने ये पूछा
ReplyDeleteमज़हब किसको कहते हैँ, ये क्या कोई बीमारी है!
अहा एक से एक बेहतर ... अंजू आप नगीना ढूंढकर लाई हैं ..
बधाई आप दोनों को .... सिराज ! आपको मेरी ढेर सारी दुआएँ और प्यार ..
खूब लिखिए इसी बेबाकी के साथ ..
सोच को तार-तार करने वाली ग़ज़लें हैं।
ReplyDeleteमुल्क़ को तक़सीम कर के क्या मिला है
अब भी जारी नफ़रतोँ का सिलसिला है!
क्योँ झगड़ते हैँ सियासी चाल पर हम
मुझको हर हिन्दोस्तानी से गिला है!
शानदार...बधाई
इन्हें पहले भी पढ़ा हुआ है, बहुत मानीखेज शायर हैं|
ReplyDeleteभई वाह ... लाजवाब ग़ज़लें हैं सारी सिराज साहब की ... इस उम्र में ये तेवर हैं तो जबरदस्त गुल खिलाने वाले हैं जनाब ... सुभान अल्ला ... बधाई हो ...
ReplyDeleteman gye miya
ReplyDeleteवाह:बहुत सुन्दर ! एक से बढ़कर एक गजल..
ReplyDeleteसिराज उम्मीद नहीं अदब के लिए उम्मीदों का पुलिंदा है ....अल्लाह ये कलम महफूज़ रखे !
ReplyDeleteAbhishek Das ka comment....Too promising and mature....!
ReplyDeleteWakai....maine jitna suna tha usse kahin jyada inhe paya...bahoot khub...
ReplyDeletekhoob aur bahot khoob Siraj,,, ache aur manekhhez ashaar,,,,sirf hawa ,patti,mehbooba, phul ,khusbu nahii kuch aisa jo kaam aaye logo ke.. :)
ReplyDeleteसिराज़ भाई ये उम्र और ये तजुर्बा! क्या बात है, मैंने कई शायरो के ग़ज़ल पढ़े हैं, अहमद फ़राज़ मेरे सबसे पसंदीदा शायर हैं, आप छोटे फ़राज़ साहब हैं,।
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