अनुवाद कार्य अपने आप मे बहुत कठिन कार्य है और यह कठिनाई तब और बढ़ जाती है जब अनुवादक किसी विदेशी भाषा की रचना को अपनी मातृ भाषा मे रूपांतरित कर प्रस्तुत करना चाहता हो;क्योंकि अनुवादित रचना यदि अंश मात्र भी मूल रचना की भावना को अभिव्यक्त न कर पाई तो अनुवादक की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है।
मूल रूप से जमशेदपुर से संबंध रखने वाली तथा वर्तमान मे स्वीडन प्रवास कर रहीं अनुपमा पाठक (जिनके नाम से हिन्दी ब्लॉग जगत मे शायद ही कोई अपरिचित होगा ) अनुवाद के इस कार्य को ब-खूबी अंजाम दे रही हैं और वर्तमान मे स्वीडिश भाषा की कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं को हिन्दी भाषा तथा देव नागरी मे सफलता पूर्वक रूपांतरित कर रही हैं। उनके अनुवाद में न केवल मूल भाषा की आत्मा को जीवंत पाया जाता है अपितु कविता से उनका जुडाव सहज ही निखर कर सामने आता है!
'उड़ान अन्तर्मन की ' के आज के अंक मे हम ले कर आए हैं अनुपमा जी की कुछ चर्चित अनूदित रचनाएँ।
मूल रूप से जमशेदपुर से संबंध रखने वाली तथा वर्तमान मे स्वीडन प्रवास कर रहीं अनुपमा पाठक (जिनके नाम से हिन्दी ब्लॉग जगत मे शायद ही कोई अपरिचित होगा ) अनुवाद के इस कार्य को ब-खूबी अंजाम दे रही हैं और वर्तमान मे स्वीडिश भाषा की कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं को हिन्दी भाषा तथा देव नागरी मे सफलता पूर्वक रूपांतरित कर रही हैं। उनके अनुवाद में न केवल मूल भाषा की आत्मा को जीवंत पाया जाता है अपितु कविता से उनका जुडाव सहज ही निखर कर सामने आता है!
(अनुपमा पाठक ) |
'उड़ान अन्तर्मन की ' के आज के अंक मे हम ले कर आए हैं अनुपमा जी की कुछ चर्चित अनूदित रचनाएँ।
1) टॉमस ट्रांस्त्रोमर की एक कविता
”दो सत्य”
दो सत्य
एक दूसरे के पास आते हैं
एक आता है भीतर से
एक आता है बाहर से
और जहां मिलते हैं दोनों, वहीँ है इंसान के पास
एक मौका स्वयं को देख पाने का.
एक दूसरे के पास आते हैं
एक आता है भीतर से
एक आता है बाहर से
और जहां मिलते हैं दोनों, वहीँ है इंसान के पास
एक मौका स्वयं को देख पाने का.
2) वोल्फ स्च्रन्क्ल की एक कविता
“यात्री के उद्देश्य”
मैं जीता हूँ
हमेशा एक यात्रा पर गायब रहने के लिए
सुबहें कभी भी एक ही स्थान पर
मुझे हर रोज़ अचंभित नहीं कर सकती
मैं ऐसा किसी विशेष कारण
के तहत नहीं करता
हो सकता है मैं जन्मा ही होऊं
यात्री के जूतों के साथ
या शायद हूँ
थोड़ा सा पागल
या फिर केवल इतना ही कि चाहता हूँ
कॉफ़ी से
सदा अलग अलग सुगंध आती रहे.
हमेशा एक यात्रा पर गायब रहने के लिए
सुबहें कभी भी एक ही स्थान पर
मुझे हर रोज़ अचंभित नहीं कर सकती
मैं ऐसा किसी विशेष कारण
के तहत नहीं करता
हो सकता है मैं जन्मा ही होऊं
यात्री के जूतों के साथ
या शायद हूँ
थोड़ा सा पागल
या फिर केवल इतना ही कि चाहता हूँ
कॉफ़ी से
सदा अलग अलग सुगंध आती रहे.
3) गुन्नर इकेलोफ़ की एक कविता
”हर एक इंसान अपने आप में एक दुनिया है”
हर एक इंसान अपने आप में एक दुनिया है, जीवों से भरा हुआ
जो हैं अंधे विद्रोह में
अपने आप के ही खिलाफ जो राजा सम राज करता है उन पर.
हर आत्मा में एक हजार आत्माएं बंदी हैं,
प्रत्येक दुनिया में एक हजार और दुनिया है छिपी हुई
और ये अंधी, ये छिपी हुई दुनिया
असल है और जीवंत है, हालांकि अपरिपक्व है,
उतनी ही सच्ची जितना कि सच्चा मेरा अस्तित्व है. और हम राजा लोग
और हमारे भीतर उपस्थित हज़ार संभावित राजकुमार
स्वयं ही विषयों के दास हैं, स्वयं ही बंदी हैं
किसी दिव्य आकृति में, जिसके अस्तित्व और स्वरुप को
उसी रूप में लेते हैं हम जैसे हमारे वरिष्ठ लेते हैं
अपने वरिष्ठों को. उनकी मृत्यु और उनके प्रेम से
हमारी अपनी भावनाओं ने पाया है एक रंग.
जैसे कि जब एक बेहद शक्तिशाली स्टीमर गुज़रता है
सुदूर, क्षितिज पर, वहाँ होती है
बेहद चमकीली शाम. -और हम नहीं जानते कि
जबतक एक लहर पहुँचती है समुद्री तट पर हम तक,
पहले एक, फिर एक और फिर अनगिनत
करती है शोर और धड़कती है तब तक जबतक कि सबकुछ नहीं हो जाता
पूर्ववत. -सब कुछ फिर भी अलग ही होता है.
फिर हम एक विलक्षण चिंता कि छाया में होते है
जब कुछ संकेत हमें बताते हैं कि लोग यात्रा कर चुके हैं,
कि उनमें से कुछ को संभावित मुक्ति मिल चुकी है.
जो हैं अंधे विद्रोह में
अपने आप के ही खिलाफ जो राजा सम राज करता है उन पर.
हर आत्मा में एक हजार आत्माएं बंदी हैं,
प्रत्येक दुनिया में एक हजार और दुनिया है छिपी हुई
और ये अंधी, ये छिपी हुई दुनिया
असल है और जीवंत है, हालांकि अपरिपक्व है,
उतनी ही सच्ची जितना कि सच्चा मेरा अस्तित्व है. और हम राजा लोग
और हमारे भीतर उपस्थित हज़ार संभावित राजकुमार
स्वयं ही विषयों के दास हैं, स्वयं ही बंदी हैं
किसी दिव्य आकृति में, जिसके अस्तित्व और स्वरुप को
उसी रूप में लेते हैं हम जैसे हमारे वरिष्ठ लेते हैं
अपने वरिष्ठों को. उनकी मृत्यु और उनके प्रेम से
हमारी अपनी भावनाओं ने पाया है एक रंग.
जैसे कि जब एक बेहद शक्तिशाली स्टीमर गुज़रता है
सुदूर, क्षितिज पर, वहाँ होती है
बेहद चमकीली शाम. -और हम नहीं जानते कि
जबतक एक लहर पहुँचती है समुद्री तट पर हम तक,
पहले एक, फिर एक और फिर अनगिनत
करती है शोर और धड़कती है तब तक जबतक कि सबकुछ नहीं हो जाता
पूर्ववत. -सब कुछ फिर भी अलग ही होता है.
फिर हम एक विलक्षण चिंता कि छाया में होते है
जब कुछ संकेत हमें बताते हैं कि लोग यात्रा कर चुके हैं,
कि उनमें से कुछ को संभावित मुक्ति मिल चुकी है.
4) वर्नर वोन हेइदेन्स्तम की एक कविता
“लम्बी पैदल यात्रा”
मैं वापस चलता हूँ उस पुल पर, जो ले जा रही है
पृथ्वी से दूर अपरिचित की ओर
और स्वयं दूरी बन जाता हूँ मैं जो पहले कभी था.
वहां नीचे हो रही है आलोचना और चल रहा है विरोध
और तीर चल रहे हैं युद्ध की परंपरा के अंतर्गत,
लेकिन जहाँ मैं जा रहा हूँ, वहाँ देखता हूँ, कि सही और सम्माननीय
मेरे दुश्मनों के कवच पर भी अंकित है.
जीवन का स्वर अब मुझे और भ्रमित नहीं कर सकता.
मैं इतना अकेला हूँ जितना कि एक इंसान हो सकता है,
लेकिन स्पष्ट है अंतरिक्ष, ऊँचा और स्थिर,
और मैं स्वयं को भूल चुका हूँ और स्वतंत्र विचर रहा हूँ.
मैं अपने जूते ठीक करता हूँ और छड़ी फेंक देता हूँ.
मैं चुपचाप वहाँ जाऊँगा, और धूल धुंधला न कर सकेगी
उस दुनिया को, जहाँ सबकुछ शुद्ध श्वेत है बर्फ़ की तरह.
वहाँ नीचे वे ढ़ोते हैं एक बार कब्र तक
एक दीन इंसानी मिट्टी और बुदबुदाते हैं
एक नाम - वह नाम, जो कभी मेरा था.
पृथ्वी से दूर अपरिचित की ओर
और स्वयं दूरी बन जाता हूँ मैं जो पहले कभी था.
वहां नीचे हो रही है आलोचना और चल रहा है विरोध
और तीर चल रहे हैं युद्ध की परंपरा के अंतर्गत,
लेकिन जहाँ मैं जा रहा हूँ, वहाँ देखता हूँ, कि सही और सम्माननीय
मेरे दुश्मनों के कवच पर भी अंकित है.
जीवन का स्वर अब मुझे और भ्रमित नहीं कर सकता.
मैं इतना अकेला हूँ जितना कि एक इंसान हो सकता है,
लेकिन स्पष्ट है अंतरिक्ष, ऊँचा और स्थिर,
और मैं स्वयं को भूल चुका हूँ और स्वतंत्र विचर रहा हूँ.
मैं अपने जूते ठीक करता हूँ और छड़ी फेंक देता हूँ.
मैं चुपचाप वहाँ जाऊँगा, और धूल धुंधला न कर सकेगी
उस दुनिया को, जहाँ सबकुछ शुद्ध श्वेत है बर्फ़ की तरह.
वहाँ नीचे वे ढ़ोते हैं एक बार कब्र तक
एक दीन इंसानी मिट्टी और बुदबुदाते हैं
एक नाम - वह नाम, जो कभी मेरा था.
5)हेनरी पर्लैंड की एक कविता
”ईश्वर की पहली कृति”
ईश्वर की पहली कृति
शून्य है.
आसमान ने धारण कर रखा है उसे,
सितारे भी वही हो जाने वाले हैं.
वह स्वयं भी वहीँ स्थित है.
उसकी अंतिम कृति
लौ है,
जो सब चीजों में छलती है.
क़यामत वाले दिन
इसकी चमक
जीवन को भस्म कर डालती है,
जो एक भड़कदार नक़ाब की तरह
छिपा लेता है
ईश्वर की पहली कृति को.
शून्य है.
आसमान ने धारण कर रखा है उसे,
सितारे भी वही हो जाने वाले हैं.
वह स्वयं भी वहीँ स्थित है.
उसकी अंतिम कृति
लौ है,
जो सब चीजों में छलती है.
क़यामत वाले दिन
इसकी चमक
जीवन को भस्म कर डालती है,
जो एक भड़कदार नक़ाब की तरह
छिपा लेता है
ईश्वर की पहली कृति को.
6) विल्हेल्म इकेलुन्द की एक कविता
"हे कविता!"
हे कविता!
वो हिम्मत नहीं करेगा
आने की तेरे निकट,
जिसकी आत्मा में निहित नहीं हैं
सपने,
सपने देखने की पर्याप्त उर्जा
सपने सजाने की हिम्मत -
शब्द!
शब्द का पुनर्जन्म.
है जिनके गर्जन में-: "यथार्थ अज्ञात है!"
हर उस बात के लिए जिसमें सांस लेती है आस्था,
वास्तविक जीवन का उत्साह;
हैं वो शब्दों को खड़खड़ाने वाले,
उनकी आत्मा ने कभी नहीं चखी
स्वप्न की मदिरा,
शब्द का रक्त.
वो हिम्मत नहीं करेगा
आने की तेरे निकट,
जिसकी आत्मा में निहित नहीं हैं
सपने,
सपने देखने की पर्याप्त उर्जा
सपने सजाने की हिम्मत -
शब्द!
शब्द का पुनर्जन्म.
है जिनके गर्जन में-: "यथार्थ अज्ञात है!"
हर उस बात के लिए जिसमें सांस लेती है आस्था,
वास्तविक जीवन का उत्साह;
हैं वो शब्दों को खड़खड़ाने वाले,
उनकी आत्मा ने कभी नहीं चखी
स्वप्न की मदिरा,
शब्द का रक्त.
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प्रस्तुति-यशवन्त माथुर,
सहयोग-अंजू शर्मा
अनुवाद बहुत सुन्दर हैं. प्रभावित करते हैं. भाषा सहज रूप से विदेशी कविता के साथ विन्यस्त हुई है.
ReplyDeleteअंजू इन्हें साझा करने के लिए आभार और अनु को बधाई!
सुंदर अनुवाद हैं.अनुपमा चुपचाप बहुत अच्छा काम कर रही हैं. बधाई की भरपूर ह्क़दार हैं. अन्यत्र लिखी जा रही कविता को सहज-संप्रेषणीय तरीक़े से हमें लगातार परिचित करा रही हैं.
ReplyDeletebehad sundar kavitayen aur utne hee sundar anuvaad.. shukriya aparna mujhe padhvane ke liye aapne tag kiya..anupama ji ko badhai..
ReplyDeleteमूल कविताएँ जितना सुन्दर, उतनी ही सुन्दर हैं उन के अनुवाद ... मूल कवि एवं अनुवादक दोनों को इतना उच्च्स्तरीय काम के लिए हार्दिक बधाइ... भविष्य में भी इस प्रकार के प्रस्तुति का अपेक्षा रहेगा...
ReplyDeleteस्वीडिश कवितओं के बेहतरीन हिन्दी अनुवाद पढ़ कर अच्छा लगा. धन्यवाद
ReplyDeleteसचमुच सारी कवितायें बेहतरीन हैं .. कवितायों के चयन और उनकी अंतरात्मा को बचाए रखने के हुनर को मैं हृदय से सलाम करता हूँ....
ReplyDelete(aharnishsagar)
सुन्दर कविताएं, बेहतरीन अनुवाद…
ReplyDeleteअनुपमा पाठक के पास वाकई कविता के मर्म का मूर्त करने वाली सहज भाषा है, वे जिस सहजता से भाषा में छुपे स्पन्दन को अनुवाद में संभव कर लेती हैं, उससे कविता के भीतर संरक्षित सौन्दर्य और निखर उठता है। उन्होंने गुन्नर इकेलोफ की कविता "हर एक इन्सान अपने आप में एक दुनिया है" का जितना खूबसूरत अनुवाद किया है, पढकर मन को सुकून मिलता है। अनुपमा को बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteमेरे प्रयास को इतनी सुन्दरता से प्रस्तुत करने के लिए 'उड़ान अंतर्मन की' का आभार!
ReplyDeleteआप सबों का स्नेह और आशीष हमें और अथक प्रयास करने की प्रेरणा देगा...,
शब्दाशीश हेतु बहुत बहुत आभार आप सभी गुणीजनों का!
पहली ही कविता को पढकर कवि/ अनुवादक की कविता के प्रति समझ और भाषा ज्ञान की उत्कृष्ठता का भान हो जाता है.कविताओं का अनुवाद आसान काम नहीं उसमें निहित कवि के मर्म को समझना और फिर उसे दूसरी भाषा में ढालना ..
ReplyDeleteबेहतरीन कविताओं का बेहतरीन अनुवाद है.
अनुपमा जी को इस कार्य के लिए बहुत बहुत बधाई, अनुवाद इतना आसान भी नहीं होता और फिर उसको अपनी भाषा में उसकी लय और भावों को उसी रूप में ढाल कर प्रभावशाली बनाये रखना.
ReplyDeleteइतने मंजे हुए एवं उच्च स्तरीय सफल अनुवाद के लिए अनुपमा जी को बहुत बहुत बधाई ! कविता पढ़ते समय लेश मात्र को भी कहीं व्यतिक्रम या लयभंग की स्थिति पैदा नहीं होती यही अनुवादक की सबसे बड़ी सफलता है ! अनुवाद के लिए जो रचनाएं उन्होंने चुनी हैं वे भी बेमिसाल हैं ! अंजू जी व यशवंत जी आप दोनों का धन्यवाद एवं आभार इन रचनाओं तक पहुँचाने का मार्ग आपने दिखलाया !
ReplyDeleteबहुत प्यारा अनुवाद.....
ReplyDeleteरचनाओं का चयन भी लाजवाब........
शुक्रिया यशवंत.
अनुपमा जी को ढेरों बधाई.
सस्नेह.
Excellent commendable efforts to make sense of original writings in Hindi means lots of wisdom.
ReplyDeleteअनुपमा जी, बहुत ही बढ़िया कविताएँ और अच्छा अनुवाद.. बधाई और शुभकामनाएं..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कवितायें अनूदित की है अनुपमा जी आपने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनुवाद .... सभी कवितायेँ अच्छी लगीं
ReplyDeleteमूल स्वीडिश रचनाएँ नहीं मालूम क्या-क्या कैसे कह रही होंगी, परन्तु, जो कुछ अनुपमा ने उकेरा है वह उनके ’स्व’ को निरुपित करता हुआ दीखता है. यही एक अनुवाद की तार्किक सफलता है. मूल रचनाकार के भाव-विन्यास अक्षुण्ण रहें और अनुवाद उसे ओड़ कर अपने लिहाज़ से पाठक को सौंप दे.
ReplyDeleteआपके इस प्रयास को मेरा सादर अभिनन्दन और हार्दिक शुभकामनाएँ
-- सौरभ
अनुपमा जी के अनुवाद वाकई अच्छे हैं और एक मँजी और परिपक्व काव्यभाषा
ReplyDeleteमें प्रस्तुत किए गए हैं। साधुवाद।
अनुवाद उत्कृष्ट हैं .............कविताओं का चयन भी लाजबाब ....अनु जी के साथ साथ अंजू जी और यशवंत को बहुत बहुत बधाई और साधुवाद !
ReplyDeletebahut accha anuvad hai.....
ReplyDeleteबहुत ही वन्दनीय कार्य है .. किसी दूसरे साहित्य के द्वारा उस समाज की पहचान होती है ...
ReplyDeleteइस अनुवाद का बहुत बहुत शुक्रिया ...
सुन्दर अनुवाद
ReplyDeleteदोस्तों, हम लोग आपके आभारी हैं, ब्लॉग 'उड़ान अंतर्मन की' को आपका भरपूर स्नेह, सराहना और प्रोत्साहन मिल रहा है....मैं अपने, यशवंत और अनुपमा जी की ओर से आभार प्रकट करती हूँ, उम्मीद है भविष्य में भी आप ऐसे ही स्नेह बनाये रखेंगे......
ReplyDeleteanuvaad bahut dushkar kary hai, khaskar kaviton ka anuvaad. anupma ji ne kavitaon ke marm ko samajhkar sateek shabdavali men anuvaad kiya hai, aur kavitaon ka chunav bhi sunder hai, badhai. sweden men hi mere mitra-kavi (Dr) Satikumar bhi hain aur unhone anek swedish kaviyon ke anuvaad kiye hain. ek sankalan bhi hai 'Safed raaten...' mile to dekh len.
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